बोध प्रसंग या जूनियर मदर टेरेसा

मदर टेरेसा दुनिया भर में अपनी सेवाओं के कारण प्रसिद्ध हो गई है और उन्हें सरकार ने “भारत रत्न से सम्मानित किया है। मैं आपको राजस्थान के पाली जिले की दूसरी मदर टेरेसा का जिक्र कर रहा

 

सात दशक पूर्व अजमेर जिले के ब्यावर कस्बे में युवती सुभद्रा जी जैन की शादी हुई थी। शादी के कुछ माह पश्चात ही दोनों पति-पत्नी में मतभेद हो गया । पति महाराज उन्हें अपने हाल पर छोड़ कर कलकत्ता चले गये और किसी अन्य स्त्री के साथ विवाह रचा लिया। आगे की जिन्दगी जीने के लिए उन्होंने अपने भाईयो से आज्ञा लेकर पाली जिले के रानी स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर सर्वोदय केन्द्र आ गयी | और यहां के व्यवस्थापक जी को अपनी व्यथा बताई तथा आगे सेवा करने का संकल्प लिया। व्यवस्थापक जी ने उन्हे एक कमरा रहने तथा एक कमरा बच्चियों की पढ़ाई के लिए दे दिया। सर्वप्रथम 3-4 लड़कियों को शिक्षा देने का कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे समय बीतने पर और अधिक लड़कियां पढ़ाई के लिए सुभद्रा बहिन जी के पास आने लगी।

 

रानी क्षेत्र के धनाढ्य वर्ग ने सर्वोदय केन्द्र के पास ही खेत खरीद लिया और उसमें स्कूल व छात्रावास विद्यावाड़ी के नाम से बना दिये और प्राइमरी शिक्षा श्रीमती सुभद्रा जी के मार्गदर्शन में शुरू हुई। समय के साथ-साथ विद्यावाड़ी में स्कूल व छात्रावास का विस्तार चलता रहा और गत दस वर्ष पूर्व ही वही विद्यावादी शिक्षण संस्थान कॉलेज के रूप में क्रमोन्नत हो चुका है और करीब 1000-1100 लड़कियां यहां रह कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है।

 

श्रीमती सुभद्रा जी ने शिक्षा की नींव डालने के साथ लड़कियों में अच्छे संस्कार डालने जारी रखे। पहली बात तो यह है कि हर लड़की सब अपने कार्य स्वयं अपने हाथों से करे, नौकरों के मरास नहीं। लड़कियों को इस तरह ट्रेनिंग दी जाती है कि भविष्य में ये आदर्श गृहणी के रूप में अपने को साबित कर सके।

 

दूसरी व्यवहार में यह गुणवत्ता उत्पन्न की कि हर लड़की चाहे वरिष्ठ हो या कनिष्ठ तथा अध्यापक चाहे कॉलेज की छात्रा से बात करे या पहली कक्षा की लड़की से, नाम के साथ “जी” लगाकर सम्बोधित करेंगे, जोकि आज भी यथावत है।

 

श्रीमती सुभद्रा जी के दिमाग में हर लड़की का नाम उसका पैतृक निवास स्थान तथा पिताजी क्या व्यवसाय करते हैं, उनकी जानकारी उनके पास कम्प्यूटर की तरह याद थी, जबकि कम्प्यूटर का उन दिनों अविष्कार भी नहीं हुआ था व सादा जीवन उच्च विचार की मूर्ति थी। अतः जो भी उनसे मिलता, प्रभावित हुए बिना न रहता। उन्हें राष्ट्रपति पुरुस्कार भी मिल चुका था। उनकी तनख्वाह से अपना खर्च निकालकर जो भी बचत होती, संस्था के काम में लगाती रहती।

 

वृद्धावस्था में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा और उनके भाईयों ने उनसे विद्यावाड़ी छोड़कर अपने घर व्यावर चलने के लिए | दबाव डाला तो सब संस्था की लड़कियां जोर-जोर से रोने लगी और उनकी भावना को देखकर श्रीमती सुभद्रा जी अपने जीवन की अन्तिम सास तक विद्यावाड़ी में सेवारत रही और डेढ़ साल पूर्व स्वर्ग सिधार गई। पाली जिले में जनता उन्हें मदर टेरेसा की प्रतिमूर्ति के रूप में आज भी याद करती है। एक बार पुनः श्रीमती सुभदाजी की आत्मा को नमनपूर्वक श्रद्धांजलि

 

यह प्रसंग जगह समाज के उन महिलाओं / पुरुषों के लिए प्रेरणादायक होगा जोकि शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए है तथा वास्तव में | बच्चों का भविष्य सुधारना चाहते है।

 

-Er. Tarachand

To read this story in English click here:

Bodh Prasang or Junior Mother Teresa

 

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